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सेवा की जरूरत किसे 'पत्थर या इंसानो ' को ?

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जब भगवान दुनिया के हर कोने में है तो पूजा सिर्फ पत्थर की क्यों, जब लोग स्टेशनों में दिन गुजारने हम सभी से रहमत मांगते है तब क्या हमे उनमे भगवान नजर नही आता । सच्ची पूजा क्या है?  हम पत्थरों के मूर्तियो की रोज़ क्यों पूजा करते है?जबकि इसने आज़तक इंसानो को कुछ नही दिया।  आखिर पूजा क्या है? क्यो करते है? क्या मिलता है? आपने कभी न कभी तो किया ही होगा या हिस्सा लिया ही होगा। वस्तुतः पूजा का अर्थ होता है किसी को एक ऐसी सार्थक श्रद्धांजलि जो हम आत्मीय प्रेरणा से किसी को अर्पित करें जो हमारा अपना हो ईष्ट हो, और अपना आपका दोस्त, आपके जनक, आपके आदर्श कोई भी हो सकते है, और वह इष्ट आपका के माता पिता आपके गुरुजन ,आपकी बड़ी दीदी कोई भी हो सकती है। भगवान इस दुनिया में कहां है हम नही जानते, मंदिरो तो सिर्फ़ पत्थर हुआ करती है। कितना अजीब है न, पशु पक्षियों, बेमौत मरने वालो लोगो, परेशान लोगो में हमे जान भी नही दिखती और और पत्थर में कैसे भगवान नजर आता है, लेकिन हां उसी मंदिर के किनारे जो बेसहारे, बेवक़्त बिखरे , बदकिस्मती की भेट चढ़े लोग होते है न किनारो में, भगवान के असली स्वरूप...